Thursday, September 10, 2009

shaayari

SJ (28.8.09)

क्यों कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता

सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता

कोई सह लेता है कोई कह लेता है क्योंकि

ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता

आज अपनो ने ही सिखा दिया हमें यहाँ

हर ठोकर देने वाला पत्थर नही होता

क्यों ज़िंदगी की मुश्क़िलों से हारे बैठे हो

इसके बिना कोई मंज़िल, कोई सफ़र नही होता

कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म ना कर

ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही

VM (07.9.09)

यह सच है कि खुद से बेह्तर कोइ साथी नही होता

पर खुद को पाना भी तो इतना आसान नही होता

खुद को पाना गर इतना आसान होता

तो दुनिया मे इतना गम न होता और

कोई कभी तन्हा ना होता

हमने भी कभी तमन्ना की थी हमसफर की दिले साकी की

एक हसीन सपना सा देखा था ज़िन्दगी के दिन ओ रातो की

पर कोन जांनता है ख्वाब के पीछे क्या होता है

खुशबू ए फूल है या कांटो की चुभन है

अब तनहाई ही हमसफर है हमसाथी है हमसाकी है

किसी का साथ अब अच्छा नही लगता

दिल घब्रराता है अब किसी की आहट से

खामोशी खामोशी खामोशी बस सिर्फ खामोशी हर तरफ खामोशी